नवजात शिशु को पोषण देने के लिए पहला कदम breast feeding यानी स्तनपान होता है। मां के दूध में वे सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो बच्चे की ग्रोथ और उसके विकास के लिए जरूरी होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक 6 माह की आयु तक बच्चों को पूरी तरह से स्तनपान कराना चाहिए और उसके बाद 2 साल और उसके बाद बाहर के दूध के साथ स्तनपान को जारी रखना चाहिए। चूंकि 6 महीने तक बच्चे की खुराक पूरी तरह से breast feeding पर निर्भर होती है, इसलिए मांओं को अपने आहार को लेकर सतर्क रहना चाहिए क्योंकि इसका सीधा असर दूध की मात्रा और गुणवत्ता पर पड़ता है।
दूध पिलाने वाली माताओं को सामान्य महिलाओं की तुलना में 600 अतिरिक्त कैलरी अपनी खुराक में शामिल करनी चाहिए। अतिरिक्त कैलरी की यह जरूरत संतुलित आहार से पूरी होनी चाहिए जिसमें विटमिन, मिनरल, प्रोटीन, कॉर्बोहाइड्रेट, फैट्स और पानी शामिल हों। बच्चे को मां के दूध की पर्याप्त मात्रा मिलती रहे, इसके लिए जरूरी है कि ये पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में ग्रहण किए जाएं।
स्तनपान breast feeding से शिशुओं को होने वाले फायदे
मां का दूध पोषण प्रदान करता है:- मां का दूध बच्चे के लिए संपूर्ण आहार होता है – यह बच्चे के भोजन और पानी की आवश्यकता को पूरा करता है. जो नवजात बच्चा केवल breast feeding करता है उसे पहले छह महीनों तक पानी देने की भी जरूरत नहीं होती है और 6 महीने के बाद बच्चे को दूध के साथ-साथ उसकी उम्र के हिसाब से ठोस आहार देने की शुरुआत की जाती है.
तेज दिमाग:– जिन शिशुओं को breast feeding कराया जाता है उनकी इंटेलिजेंस (दिमाग) उन शिशुओं की तुलना में बेहतर होती है जिन्हें फीड करने के लिए दूसरे तरीके अपनाए जाते हैं क्योंकि मां के दूध में मस्तिष्क के विकास को बढ़ावा देने वाले फैक्टर यानी कारक मौजूद होते हैं. शिशु के मस्तिष्क का 90 प्रतिशत विकास पहले 1,000 दिनों (गर्भाधान के समय से उसके दूसरे जन्मदिन तक) में हो जाता है. इस समय के दौरान मां का दूध शिशु के मस्तिष्क विकास में काफी मदद करता है.
इम्युनिटी बढ़ाता है:- मां का दूध बच्चे की इम्युनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है इसलिए breast feeding करने वाला बच्चा बार-बार बीमार नहीं पड़ता. और इसलिए उनमें कान में इन्फेक्शन, रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इन्फेक्शन जैसे मामले कम होते हैं.
एलर्जी को करता है कम:- breast feeding करने वाले शिशुओं को एलर्जी कम होती है क्योंकि वे अपने शुरुआती दौर में गाय के दूध जैसे फॉरन प्रोटीन (foreign proteins) के संपर्क में नहीं आते हैं. पहले कुछ महीनों में फॉरन प्रोटीन के संपर्क में आने से एलर्जी विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए जो बच्चे breast feeding करते हैं उन्हें एक्जिमा, अस्थमा और एलर्जी डिसऑर्डर कम होते हैं.
लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से सुरक्षा:- braest feeding करने वाले शिशुओं में बचपन में मोटापे और इससे संबंधित बीमारियों जैसे इंसुलिन रजिस्टेंस, डायबिटीज और हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया का खतरा कम हो जाता है. braest feeding करने वाला बच्चा फॉर्मूला दूध पीने वाले बच्चे की तुलना में थोड़ा दुबला होता है और यह कोई बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है.
मां के लिए स्तनपान कराने के फायदे
breast feeding मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग को बढ़ाने में मदद करता है.
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का वजन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. लेकिन डिलीवरी के बाद brest feeding उनके बढ़े हुए फैट और वजन से छुटकारा दिलाने में मदद करती है.
बच्चे के जन्म के तुरंत बाद braest feeding शुरू करने से मां के शरीर में खून की कमी और यूट्रस इन्वॉल्यूशन को कम करने में मदद मिलती है. दरअसल डिलीवरी के बाद भी यूट्रस का साइज बढ़ा हुआ रहता है लेकिन ब्रेस्टफीडिंग से इसे कम करने में मदद मिलती है और इसे कम करने के प्रोसेस को इन्वॉल्यूशन कहते हैं.braest feeding कराने से मां में ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर जैसी घातक बीमारियों की संभावना कम हो जाती है
स्तनपान से जुड़ी कुछ जरूरी बातें
प्री-लैक्टियल (Pre-lacteal) फीड से बचें:– ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआत करने से पहले कुछ समुदायों में लोग बच्चे को शहद या कोई अन्य पदार्थ खिलाते हैं. लेकिन इसके बजाय बच्चे को कोलोस्ट्रम दिया जाना चाहिए. कोलोस्ट्रम वह दूध होता है, जो मां डिलीवरी के बाद पहले तीन दिनों में प्रदान करती है; यह थोड़ा गाढ़ा और पीले रंग का होता है और इसमें कई सारी इम्यून-प्रोटेक्टिव प्रॉपर्टीज होती हैं. इस दूध को पीने से बच्चे की इम्युनिटी बढ़ती है, जिससे ये दूध बच्चे को कई तरह के संक्रमणों से बचाता है. शिशु के जन्म के 30 मिनट के भीतर उसे कोलोस्ट्रम पिलाना चाहिए.
पहले छह महीनों में शिशु को पानी पिलाने से बचें:– कुछ माता-पिता और परिवारों का मानना है कि शिशु को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए खास तौर से गर्मी के महीनों के दौरान स्तनपान के साथ – साथ पानी भी देना चाहिए. लेकिन मां का दूध पहले छह महीनों तक शिशु की भोजन और पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. मां के दूध में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है और मां के दूध में वह सारा पोषण होता है, जो 6 महीने की उम्र तक शिशु के विकास के लिए आवश्यक है.
एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग और कॉम्पलीमेंट्री फीडिंग:– जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि पहले छह महीनों तक शिशु को केवल मां का दूध देना जरूरी है, लेकिन जब शिशु छह महीने का हो जाए तो उसे मां के दूध के साथ-साथ ठोस आहार देना भी शुरू करना चाहिए. अन्नप्राशन (पहली बार चावल खाने की रस्म) और ठोस आहार की शुरुआत से जुड़े समारोह शिशु के छह महीने का होने के बाद शुरू किए जा सकते हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्तनपान दो साल तक जारी रखना चाहिए.
समय से पहले जन्मे बच्चों को दूध पिलाना:- preterm बेबी यानी जो बच्चे समय से पहले जन्म ले लेते हैं उन्हें भी शुरुआत के महीनों में केवल मां का दूध ही दिया जाना चाहिए क्योंकि उनके लिए भी मां का दूध पर्याप्त होता है. यदि बच्चा किसी वजह से नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में है, तो मां का दूध निकालकर बच्चे को पिलाया जाना चाहिए.
क्या वजह हैं जो महिलाओं को स्तनपान कराने से रोकती है?
breast feeding या ब्रेस्टफीडिंग शुरू करने और उसे जारी रखने के बारे में समाज में बहुत सी गलतफहमियां फैली हुई हैं और ये एक खास वजह है जो महिलाओं को breast feeding कराने से रोकती है.
अक्सर माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे का वजन कम है और वो बच्चे का वजन बढ़ाने के लिए मिल्क सप्लीमेंट या फॉर्मूला फीड का ऑप्शन चुनते हैं. उदाहरण के लिए एक साल के बच्चे का औसत वजन लगभग नौ किलोग्राम होता है. लेकिन अगर किसी बच्चे का वजन 11 किलोग्राम है और माता-पिता को तब भी लगता है कि उनके बच्चे का वजन कम है, तो वे मिल्क सप्लीमेंट और दूसरे खाद्य पदार्थों का सहारा लेने लगते हैं.
लेकिन उन्हें समझना चाहिए इससे बच्चे को आगे चलकर मोटापा, इंसुलिन रजिस्टेंस और हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
मां और हेल्थ केयर प्रोफेशनल दोनों को ब्रेस्टफीडिंग कराने के सही तरीके की जानकारी होनी बहुत जरूरी है. शिशु को कैसे पकड़ना है और उसके मुंह में कैसे निप्पल डालना है जैसी बातें पता होनी आवश्यक हैं.
दूध पिलाते वक्त माँ का पोस्चर कैसा होना चाहिए ?
माँ गोद में लेकर बच्चे को दूध पिलायें |
शुरुआती दिनों में माँ लेड बैक पोजीशन यानी पीठ को 40 डिग्री में बैठ कर दूध पीला सकती है |
बच्चे का पेट माँ के पेट तक जुड़ा होना चाहिए |
बच्चे का सर माँ के सीने से जुड़ा होना चाहिए |
अब एक हाथ से बच्चे का मुँह, निप्पल के पास लाएं |
दूसरे हाथ से ब्रेस्ट को सपोर्ट दें |
इस बात का ध्यान दें की बच्चे का मुँह केवल निप्पल ही नहीं बल्कि एरिओला (stan और निप्पल का कला भाग ) को भी कवर करें |
इस पोजीशन में बच्चे को पकड़ने में माँ को ज्यादा मेहनत नहीं करनी परती |
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