कोलकाता रेप और मर्डर केस में संजय रॉय का बयान काफी चर्चा में रहा। उन्होंने अपने बयान में खुद को निर्दोष बताया और आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। संजय रॉय का कहना था कि उन्हें गलत तरीके से इस मामले में फंसाया जा रहा है। उन्होंने पुलिस द्वारा की जा रही पूछताछ में कहा कि उनका इस अपराध से कोई लेना-देना नहीं है और वह निर्दोष हैं।
संजय रॉय ने यह भी दावा किया कि उन्हें जबरदस्ती Polygraph Test के लिए मजबूर किया गया और इस टेस्ट के नतीजों को गलत तरीके से पेश किया गया। उनका कहना था कि पुलिस उन पर मानसिक दबाव डालकर झूठे बयान देने के लिए मजबूर कर रही है। उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा जताया और कहा कि अदालत में उनकी बेगुनाही साबित होगी।
संजय रॉय का यह बयान उनके बचाव का हिस्सा था, लेकिन जांच एजेंसियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और आगे की जांच जारी रखी।
INTRODUCTION
Polygraph Test, जिसे आमतौर पर “लाई डिटेक्टर टेस्ट” के नाम से भी जाना जाता है, अपराधों की जांच में एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित हुआ है। यह टेस्ट अपराधियों के झूठ का पर्दाफाश करने में मदद करता है। इस लेख में, हम पॉलीग्राफ टेस्ट के काम करने के तरीके, इसके उपयोग और विशेषकर कोलकाता के एक चर्चित डॉक्टर रेप और मर्डर केस में इसकी Work पर चर्चा करेंगे।
पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है?
Polygraph Test एक वैज्ञानिक उपकरण है जिसका उपयोग व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापने के लिए किया जाता है, जैसे कि हृदय गति, रक्तचाप, श्वसन दर और त्वचा की चालकता। जब किसी व्यक्ति से सवाल पूछा जाता है, तो ये शारीरिक प्रतिक्रियाएं बदलती हैं, और इन परिवर्तनों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
पॉलीग्राफ Function
- हृदय गति (Heart Rate):- जब कोई व्यक्ति तनाव में होता है, तो उसकी हृदय गति बढ़ जाती है। यह मशीन हृदय गति को मापकर यह जानने की कोशिश करती है कि व्यक्ति ने किस सवाल का जवाब देते समय अधिक तनाव महसूस किया।
- रक्तचाप (B.P):- जैसे ही व्यक्ति सवालों का जवाब देता है, उसका रक्तचाप भी मापा जाता है। झूठ बोलते समय आमतौर पर रक्तचाप में वृद्धि होती है।
- श्वसन दर (Respiratory Rate):- व्यक्ति की श्वसन दर भी एक महत्वपूर्ण संकेतक होती है। श्वसन दर में बदलाव यह संकेत कर सकता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
- त्वचा की चालकता:- जब व्यक्ति घबराता है या झूठ बोलता है, तो उसकी त्वचा में हल्की सी पसीने की परत बनने लगती है, जिससे त्वचा की चालकता बढ़ जाती है। इस परिवर्तन को Polygraph Test मशीन पकड़ लेती है।
पॉलीग्राफ टेस्ट का कानूनी महत्व
Polygraph Test को अदालतों में सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है, लेकिन इसे अपराधियों पर मानसिक दबाव डालने और सच्चाई उगलवाने के एक उपकरण के रूप में देखा जाता है। कई मामलों में, पॉलीग्राफ टेस्ट के परिणामों के आधार पर पुलिस जांच को दिशा मिलती है, हालांकि इसका अंतिम निर्णय अदालत के हाथ में होता है।
भारत में पॉलीग्राफ टेस्ट का कानूनी ढांचा
भारत में, Polygraph Test का उपयोग कानून द्वारा विनियमित किया जाता है। 2010 में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के बिना पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। अगर किसी आरोपी को पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए सहमति देनी होती है, तो उसे पहले इसके परिणामों और कानूनी प्रभावों के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है।
कोलकाता डॉक्टर रेप और मर्डर केस
अब हम उस मामले की बात करते हैं जिसमें Polygraph Test का उपयोग हुआ था। यह मामला 2000 के दशक की शुरुआत में कोलकाता में घटित हुआ था, जिसमें एक प्रतिष्ठित डॉक्टर पर एक महिला के रेप और मर्डर का आरोप लगा था। यह केस उस समय बहुत सुर्खियों में था और जांच एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था।
केस की पृष्ठभूमि
कोलकाता के एक मशहूर डॉक्टर पर आरोप था कि उसने अपने क्लिनिक में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी का पहले रेप किया और फिर उसकी हत्या कर दी। महिला की लाश क्लिनिक के पास के ही एक इलाके से बरामद हुई थी, और जांच के दौरान कई सबूत और गवाह सामने आए, जो डॉक्टर पर शक की सुई घुमाने के लिए काफी थे।
पॉलीग्राफ टेस्ट की मांग
जांच के दौरान, Doctor ने लगातार अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज किया। पुलिस ने उसे कई बार पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन हर बार वह अपने बयान पर कायम रहा। तब जांच अधिकारियों ने डॉक्टर का Polygraph Test कराने का फैसला किया, ताकि उसकी सच्चाई का पता लगाया जा सके।
पॉलीग्राफ टेस्ट के नतीजे
डॉक्टर ने Polygraph Test के लिए सहमति दे दी। टेस्ट के दौरान, उससे कई सवाल पूछे गए, जैसे कि उस रात वह कहां था, महिला के साथ उसका क्या संबंध था, और हत्या के वक्त वह क्या कर रहा था। Test के दौरान मशीन ने संकेत दिया कि डॉक्टर कुछ सवालों का जवाब देते समय बेहद तनाव में था और उसके शरीर की प्रतिक्रियाएं सामान्य से काफी अलग थीं।
इन नतीजों ने जांच एजेंसियों को Doctor के खिलाफ और अधिक सबूत जुटाने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, Polygraph Test के परिणामों को सीधे तौर पर अदालत में सबूत के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया, लेकिन इससे जांच को एक नई दिशा मिली।
पॉलीग्राफ टेस्ट की सीमाएं
Polygraph Test के कुछ महत्वपूर्ण लाभों के बावजूद, इसकी कुछ सीमाएं भी हैं:–
- सटीकता पर सवाल:- Polygraph Test की सटीकता हमेशा सवालों के घेरे में रही है। कई बार यह देखा गया है कि कुछ लोग Test के दौरान शारीरिक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित कर लेते हैं, जिससे गलत परिणाम सामने आ सकते हैं।
- अदालत में स्वीकार्यता:- जैसा कि पहले बताया गया, पॉलीग्राफ टेस्ट के परिणामों को भारतीय अदालतों में सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता। इसका मतलब है कि भले ही Polygraph Test किसी व्यक्ति के झूठ बोलने का संकेत दे, इसका कानूनी महत्व सीमित ही रहता है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन:- कुछ मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान व्यक्ति की निजता का उल्लंघन होता है और उसे मानसिक प्रताड़ना का शिकार बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
Polygraph Test, हालांकि एक विवादास्पद उपकरण है, लेकिन अपराधों की जांच में इसका उपयोग काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ है। Kolkata Rape And Murder Case जैसे मामलों में, जहां अन्य सबूतों की कमी होती है, पॉलीग्राफ टेस्ट जांच को नई दिशा देने में मदद करता है। हालांकि, इसका कानूनी महत्व सीमित है और इसे सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, लेकिन जांचकर्ताओं के लिए यह एक उपयोगी उपकरण हो सकता है।
यह स्पष्ट होता है कि Polygraph Test के उपयोग के साथ-साथ इसके सीमाओं को भी समझना आवश्यक है। किसी भी जांच में इसका उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए, ताकि न्याय सुनिश्चित किया जा सके और किसी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से फंसाया न जा सके।